पांडुलिपि संसाधन केंद्र (एमआरसी)
नव नालन्दा महाविहार की स्थापना सन् 1951 ई. में पुराने नालन्दा विश्वविद्यालय के पुनर्जागरण एवं बौद्ध-धर्म के पुनरूत्थान के लिए किया गया। महाविहार का उत्तरोत्तर विकास होता गया तथा इसे 2006 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा सम विश्वविद्यालय की दर्जा दिया गया। ई. सन् 2006 के एक वर्ष पहले इसे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के द्वारा इसके (नव नालन्दा महाविहार के) महत्ता को देखते हुए पांडुलिपि संसाधन केन्द्र की आर्हता प्रदान की गई।
उसके बाद केन्द्र ने पांडुलिपियों की गणना एवं वर्गीकरण का काम शुरू कर दिया। अब तक 35,443 (पैतीस हजार चार सौ तेतालिस) पांडुलिपियों का सर्वेक्षण का काम इस केन्द्र के द्वारा किया जा चुका है। ये पांडुलिपियाँ कागज, तालपत्र, कपड़े, तख्ते, पीतल इत्यादि पर पाए गए हैं। ये सभी पांडुलिपियों को सर्वेक्षण के बाद (मानुस) साॅफ्टवेयर के द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन दिल्ली को भेजा जा चुका है। ये पांडुलिपियाँ इतिहास, भूगोल, शास्त्र, कविता, रामायण, महाभारत, ज्योतिष इत्यादि से संबंधित हैं।
इस केन्द्र ने 2007 में एक पांडुलिपि सप्ताह, 2011 में एक उच्चस्तरीय एवं इस वित्तीय वर्ष में दो पांडुलिपि जागरूकता अभियान का आयोजन किया है। वत्तमान में यह केन्द्र डाॅ. रबीन्द्र पंथ निदेशक एवं डाॅ. ललन कुमार झा, संयोजक के निर्देशन में तथा तीन अन्य सहयोगियों के द्वारा संचालित हो रहा है।
Abbreviation :
- MRC = Manuscript Resource Centre
- NNM = Nava Nalanda Mahavihara
- NMM = National Mission for Manuscripts
For more information please :
Dr. Dhamma Jyoti
Contact no. – +91 9654629588.