प्रकाशन के बारे में
प्रकाशन
प्रकाशन शोध कार्य को आगे बढ़ाने और अध्ययन सामग्री को प्रस्तुत करने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है और किसी शैक्षणिक संस्था का एक अभिन्न अंग है। महाविहार दीर्घ अवधि और लघु अवधि की परियोजनाओं को अपने हाथ में लेता हैं। लघु अवधि की परियोजना के अंतर्गत शोध छात्रों का डाॅक्टरेट उपाधि के लिए किये गये शोध ग्रंथों का प्रकाशन, महाविहार के कर्मचारियों, अधिकारियों द्वारा लिखित विनिबंध आदि सम्मिलित है। दीर्घ अवधि की परियोजना के अंतर्गत पालि ग्रंथों का जो अब तक प्रकाशित नहीं है, देवनागरी लिपि में प्रकाशन पालि त्रिपिटक का हिन्दी अनुवाद, सूचीकरण, आलोचनात्मक व्याख्या और पांडुलिपियों का प्रकाशन हैं। पालि-हिन्दी शब्दकोश का संकलन-संपादन प्रगति पर भारत में एक विषिष्ट स्थान रखता है।
महाविहार ने सम्पूर्ण पालि त्रिपिटक के साथ ही पालि-हिन्दी शब्दकोष खंड प्, प्रथम भाग का प्रकाशन किया जिसका लोकार्पण तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति ने 2 मई 2007 को किया। 1950 के शुरूआती वर्षों मं देवनागरी लिपि में कुछ टीकाएँ भी प्रकाशित हुई। आगे चलकर आठ नव नालंदा महाविहार शोध ग्रथों (रिसर्च वाल्यमय) का भी प्रकाशन हुआ। बौद्ध धर्म से संबंधित अन्य प्रकाशनों का एक वर्ग भी प्रकाशित हुआ। शोध और प्रकाशन के विषय क्षेत्र में पालि साहित्य, संस्कृत बौद्ध साहित्य, तिब्बती साहित्य, बौद्ध दर्शन, दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध देशों का सांस्कृतिक, सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास तथा बौद्ध धर्म से जुडे अन्यविषय सम्मिलित है।
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